CONTRIBUTION OF FATAH SINGH TO Veda Study
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There are few mantras in Rigveda where a person named Bhujyu is saved by Ashwins by a boat in the middle of ocean. This boat is sometimes called an inward bird and sometimes a mysterious tree. One mantra states that 4 boat are used to save him. These 4 boats may be symbolic of 4 initial levels of consciousness. First
published on internet : 13-3-2008 AD( Faalguna shukla shashthee, Vikrama samvat
2064) वेद में उदक की प्रतीकात्मकता - सुकर्मपाल सिंह तोमर (चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा १९९५ में स्वीकृत शोध प्रबन्ध ) ऋग्वेद में नौका द्वारा भुज्यु का रक्षण अहंकार के वशीभूत होकर आत्मा अपने लक्ष्य को भूल जाता है और नाना प्रकार के इन्द्रिय - भोगों का प्रेमी होकर भुज्यु कहलाता है । यह भुज्यु वस्तुतः तुग्र नामक आदित्य रूपी परब्रह्म का पुत्र है, इसलिए इसको तौग्र्य कहा जाता है । लक्ष्य - भ्रष्ट होने के कारण वह जब वह भवसागर के बीच डूबने लगता है तो वह अपनी रक्षा के लिए अश्विनौ को पुकारता है ( ऋग्वेद १.११७.१५, १.१८०.५, १.१८२.७, ८.५.२२) । और अश्विनौ देवयुगल एक अद्भुत नाव का प्रयोग करके उसकी रक्षा करते हैं ( ऋग्वेद १.१५.३, १.१८२.५) । इस नौका को कभी तो आत्मन्वत् पक्षी कहा जाता है( ऋ. १.१८२.५) और कभी उसे समुद्र के बीच में स्थित एक रहस्यमय वृक्ष कहा जाता है जिससे तौग्र्य चिपट जाता है( ऋ. १.१८२.७) । साथ ही, एक अन्य मन्त्र में कहा गया है कि यह तौग्र्य जब एक ऐसे अनन्त अन्धकार में आपः के भीतर पीडित रोता है तो अश्विनौ के द्वारा प्रेषित चार नौकाएं उसको पार लगाती हैं - अवविद्धं तौग्र्यमप्स्व१न्तरनारम्भणे तमसि प्रविद्धम् । चतस्रो नावो जठलस्य जुष्टा उदश्विभ्यामिषता: पारयन्ति ।। - ऋग्वेद १.१८२.६ यह चार नौकाएं साधनायुक्त अन्नमय, प्राणमय, मनोमय तथा विज्ञानमय कोश हैं जो जीवात्मा रूपी तौग्र्य या भुज्यु को परमपिता परमेश्वर रूपी इन्द्र के पास पहुंचा देते हैं । उस समय परमेश्वर इन्द्र अपनी शक्ति से साधक के भीतर सूर्य को देदीप्यमान कर देता है और साधक के सभी आन्तरिक भुवन उसी इन्द्र में नियन्त्रित हो जाते हैं : इन्द्रो मह्ना रोदसी पप्रथच्छव इन्द्र: सूर्यमरोचयत् । इन्द्रे ह विश्वा भुवनानि येमिर इन्द्रे सुवानास इन्दव: ।। - ऋ. ८.३.६ इसका अभिप्राय है कि साधक के भीतर आनन्दरस रूपी सोमबिन्दुओं की उत्पत्ति और प्रसार का जीवात्मा रूपी तौग्र्य की साधना यात्रा से घनिष्ठ सम्बन्ध है । अतः तौग्र्य के उद्धार की घटना को सभी सोमसवनों में प्रवाच्य माना जाता है (निष्टौग्र्यमूहथुरद्भ्यस्परि विश्वेत् ता वां सवनेषु प्रवाच्या - ऋ. १०.३९.४ ) ।
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